This poem is about the recent beating up of Indian students in Australia and nothing that would offend Menka Gandhi!
गाज गिरे उन नरपितयों पे
जो उठा के लठ और चला ही डाला
जात धर्म का भेद बना के , रिश्तो को यूँ जो धो डाला
फिर देश में मेरे सब ने पुछा
"मेरी भैंस को डंडा क्यूँ मारा !
पिटे हमारे प्यारे बच्चे, कंगारू की लातों से
फिर भी हमने उन्हें मनाया, अपनी प्यारी बातों से
पर असमंजस में थी सरकारे ,बनी न बातों से दीवारे
दाव पे लग गयी शान हमारी, दाव पे लगा रिश्ता सारा
पर फिर भी सबको समझ न आया,"मेरी भैंस को डंडा क्यूँ मारा"
तुम गोरे हो, हम काले हैं
तुम melborune,हम dilli वाले हैं
सम्मान तुम्हारा हम भी करते, सम्मान हमारा तुम भी तो करो (तो no need)
अत्थिति की पूजा हम करते,तुम कम से कम बस शर्म करो
पर जब तोड़ दिया तुमने यह बंधन, फीर से लूटा और फिर मारा
श्री मनमोहन ने भी कहा RUDD जी से
भाई साहब "मेरी भैंस को डंडा क्यूँ मारा !
होंगी तुम्हारी मेमे गोरी
पर ऐश्वर्या है अपनी छोरी
होगी तुम्हारी Nicole प्यारी
पर उसपे तो मल्लिका भारी
अरे Bradman भी पुनर्जनम ले यहाँ सचिन रूप में आया है
यह जन्मो का रिश्ता अपना , क्या कभी समझ तुम्हे आया है
हर गए जो ट्वेंटी-ट्वेंटी, तो इतना क्यूँ खुर्रा मारा
विश्वविजेता धोनी न भी पोंटिंग से यह केह डाला
tell me o sir "मेरी भैंस को डंडा क्यूँ मारा " !
अरे नहीं आयेंगे देश तुम्हारे, रेह लो अकेले उस टापू पे
देश तुम्हारा अलग सभी से, सब से अलग जज़्बात है
हमे घमंड है अपनी धरती पे, हर एक व्यक्ति पे नाज़ है
पर कभी मिले जो कंगारू भी, भारत की पावन भूमि पे
हम फ़र्ज़ अदाई कर देंगे, मेहमान नवाजी भी कर देंगे
पर घुमा फिरा के फिर पूछेंगे
दे करके ऊंचा हुंकारा
सालो " मेरी भैंस को डंडा क्यूँ मारा" !